हैप्पी बर्थ-डे टू बॉलीवुड सिंगर उषा उत्थुप..

खबरें अभी तक । नाइट क्लब में गाना आज भी अच्छा नहीं माना जाता है. आज से 50 साल पहले तो क्या ही अच्छा माना जाता होगा. ऐसे में ये कहानी 60 के दशक से शुरू होती है. दिल्ली के नाइट क्लब में एक लड़की गाना गा रही थी. 20-22 साल की उस लड़की के लिए नाइट क्लब में गाना कोई नई बात नहीं थी. दिल्ली से पहले वो मद्रास और कलकत्ता के नाइट क्लब में भी गाने गाती थी. चटख रंग की साड़ी और बड़ी सी बिंदी लगाकर गाने गाना उसका ‘स्टाइल’ था. फिल्मी नगमों के साथ साथ उस दौर में वो लड़की काली तेरी गुथ ते परांदा तेरा लालनी  गाया करती थी.

उसके लिए बिंदास होकर गाना कोई नई बात नहीं थी. उस रोज भी कुछ नया नहीं हुआ होता अगर उस नाइट क्लब में नवकेतन फिल्मस की यूनिट के कुछ बड़े लोग ना आए होते. ये संयोग ही था कि नवकेतन फिल्मस की यूनिट ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के लिए काम कर रही थी. उस फिल्म को देव आनंद ने डायरेक्ट किया था. उस फिल्म के निर्माता और लेखक भी देव आनंद ही थे. फिल्म का संगीत आरडी बर्मन तैयार कर रहे थे. फिल्म की यूनिट के लोगों ने जब नाइट क्लब में उस लड़की को गाते सुना तो उन्हें ‘आइडिया’ आया कि क्यों ना उसकी आवाज को फिल्म में आजमाया जाए.

उषा उत्थुप के गायक बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है

7 नवंबर, 1947 की बात है. मुंबई के क्राइम ब्रांच में काम करने वाले वैद्यनाथ सोमेश्वर सामी के घर एक बेटी का जन्म हुआ. घर में भाई-बहन पहले से थे. बड़ा परिवार था. सामान्य मिडिल क्लास परिवार. घर में संगीत था लेकिन शौकिया. हां, लेकिन इस शौकिया संगीत में रेंज बहुत थी. बीथोवेन, मोजार्ट सुने जाते थे तो भीमसेन जोशी, बड़े गुलाम अली खान, बेगम अख्तर और किशोरी अमोनकर को भी सुना जाता था।

उषा उत्थुप की मां ना सिर्फ पुराने फिल्मी गाने खूब चाव से सुनती थीं बल्कि वो अच्छा गाती भी थीं. जाहिर है उषा उत्थुप के लिए इन नामों की अहमियत बड़ी थी. बचपन से ही उसे रेडियो के तौर पर सबसे अच्छा दोस्त मिला. वो दौर इंटरनेट या टेलीविजन का था भी नहीं. उषा उत्थुप रेडियो सीलोन की दीवानी थीं. बड़ी बहनें भी गाना गाती ही थीं. लिहाजा बचपन से ही जिस तरफ दीवानगी हुई वो संगीत ही था. संगीत में भी गायकी. रेडियो से अपने प्यार को लेकर उषा उत्थुप अब भी एक बात हमेशा कहती हैं,  ‘वीडियो कैन नेवर किल द रेडियो यानी वीडियो कभी रेडियो को समाप्त नहीं कर सकता है’.

खैर, बचपन का ये शौक स्कूल पहुंचा. उषा उत्थुप स्कूल में टेबल बजा-बजा कर गाना गाती थी. साथ में बाकि बच्चे भी गाते थे. बस वहीं से उनकी गायकी शुरू हुई. इस गायकी को शुरुआती दौर में नकारा गया. स्कूल में म्यूजिक टीचर ने सिखाने से मना कर दिया. उन्होंने कहा तुम्हारी आवाज गायकी के लिए फिट नहीं है. एक मर्दाना आवाज लिए गायक बनने का सपना वैसा ही था जैसे चेचक का दाग लिए ओम पुरी का हीरो बनने का सपना था. हालांकि इन दोनों के ही सपनों की परिणिति हम जानते हैं. खैर, जिस उम्र में टीचर ने बेरूखी से मना किया था उस उम्र में 100 में से 99 बच्चे रोते हुए जाते और गायकी का ख्याल दिमाग से निकाल देते. लेकिन उषा उत्थुप 100 में 99 लोगों में से थी नहीं. उन्होंने म्यूजिक टीचर की बात को अनसुना किया और शौकिया गाती रहीं।

1969 में वो 22 साल की थीं जब मद्रास में उन्होंने पहली बार गाना गाया. जमकर तालियां बजी तो लगा कि बस अब और कुछ नहीं चाहिए. वो इंग्लिश गाना था. उस दिन उषा उत्थुप को समझ आ गया कि कौन अच्छा गाता है कौन बुरा गाता है से कहीं ज्यादा जरूरी है कि कौन ओरिजिनल तरीके से गाता है. इस बात को दिमाग में बिठाकर उन्होंने बिना किसी से परंपरागत सीखे अपने संगीत सफर की शुरूआत की थी. ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के करीब 10 साल बाद जीपी सिप्पी फिल्म बना रहे थे- शान. अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे हिट कलाकारों के साथ बनाई गई उस फिल्म में संगीत आर डी बर्मन का था।

आशा भोंसले और लता मंगेशकर के गढ़ में बनाई अपनी जगह

फिल्म शान के संगीत में आरडी बर्मन ने उषा उत्थुप को गाना दिया. गाना था- दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया,जो भी किया हमने किया…शान से. इस गाने ने उषा उत्थुप को वो पहचान दिलाई जिसकी वो और उनका जज्बा हकदार थे. इसके बाद अगले कुछ वर्षों में हरि ओम हरिरंबा हो हो संबा होकोई यहां आहा नाचे नाचेएक दो च च च जैसे गाने उषा उत्थुप को लोकप्रियता की बुलंदियों पर ले गए. लता मंगेशकर और आशा भोंसले के मजबूत गढ़ वाली प्लेबैक सिंगिग में एक अलग ही किस्म की आवाज ने अपनी जगह बनाई. उषा उत्थुप आज भी कहती हैं कि दरअसल ये गाना उनकी जिंदगी का ‘स्टेटमेंट’ है. जब वो नाइट क्लब में गाती थीं तब से लेकर आज कामयाबी मिलने तक उन्होंने जो भी किया शान से किया. अब तो वो सामाजिक कार्यों में इस गाने का इस्तेमाल महिलाओं को जागरूक करने के लिए करती हैं।

उषा उत्थुप ने करीब डेढ़ दर्जन भारतीय भाषाओं में गाने गाए हैं. उन्होंने फिल्मों में अभिनय किया है. भारत सरकार ने उन्हें 2011 में पद्श्री से सम्मानित किया है. इसी साल उन्हें सात खून माफ फिल्म में डार्लिंग गाने के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था. ये जानना भी दिलचस्प है कि पाकिस्तान के लोकप्रिय बैंड जुनून का गाना ‘सैयोनी’ पहले उषा उत्थुप ही गाया करती थीं. इस गाने के लिए उन्हें ऑडिएंस का जबरदस्त प्यार मिलता रहा है।