सुप्रीम कोर्ट में SC/ST एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान फिर से जोड़ने के बचाव पक्ष में बोली केंद्र सरकार

खबरें अभी तक। सुप्रीम कोर्ट में  तुरंत गिरफ्तारी के प्रवधान को दोबारा जोड़ने पर केन्द्र सरकार ने बचाव किया है। SC/ST एक्ट के नियमानुसार तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान फिर से जोड़ने का केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बचाव किया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि, ”SC/ST ऐतिहासिक रूप से भेदभाव के शिकार हैं। इस समुदाय के साथ अब भी भेदभाव की घटनाएं होती हैं। इस तबके को सामाजिक स्तर पर अधिकारों से वंचित किया जाता है।”

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इसके साथ ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ”कानून के दुरुपयोग का मतलब उसे रद्द कर देना नहीं है। कानून में बदलाव का मकसद राजनीतिक लाभ नहीं है.” इस मामले पर अब अगले महीने मामले पर सुनवाई होनी है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सात सितंबर को हुई सुनवाई में एससी/एसटी एक्ट में हुए बदलाव पर जवाब मांगा था। जिन याचिकाओं पर कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। उनमें एससी/एसटी एक्ट के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान का विरोध किया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। लेकिन सरकार ने रद्द किए गए प्रावधानों को दोबारा जोड़ दिया है। सरकार की तरफ से कानून में हुआ बदलाव मौलिक अधिकारों का हनन करता है। इसलिए, कोर्ट इसे रद्द कर दे।

20 मार्च को दिए फैसले में कोर्ट ने माना था कि एससी/एसटी एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी की व्यवस्था के चलते कई बार बेकसूर लोगों को जेल जाना पड़ता है। इससे बचाव की व्यवस्था करते हुए कोर्ट ने कहा था-

* सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले विभाग के सक्षम अधिकारी की मंज़ूरी ज़रूरी होगी।

* बाकी लोगों को गिरफ्तार करने के लिए ज़िले के SSP की इजाज़त ज़रूरी होगी।

* DSP स्तर के अधिकारी प्राथमिक जांच करेंगे। अगर वाकई मामला बनता होगा, तभी मुकदमा दर्ज होगा।

* जिसके खिलाफ शिकायत हुई है, वो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। अगर जज को पहली नज़र में मामला आधारहीन लगे, तो वो अग्रिम जमानत दे सकता है।

जवाब में सरकार ने एससी/एसटी एक्ट में संशोधन करते हुए नई धारा 18A जोड़ दी। इसे सांसद के दोनों सदनों ने ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इस नई धारा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने वाले प्रावधान हैं। इसमें कहा गया है कि-

* SC/ST उत्पीड़न से जुड़ी शिकायत पर गिरफ्तारी से पहले जांच अधिकारी को किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।

* CrPC की धारा 438 यानि अग्रिम ज़मानत का प्रावधान इस एक्ट से जुड़े मामलों में लागू नहीं होगा।

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कानून में हुए संशोधन पर तुरंत रोक लगाने की मांग की थी। लेकिन जस्टिस ए के सीकरी और अशोक भूषण ने इससे मना कर दिया था। जजों ने कहा कि वो सरकार का पक्ष सुने बिना रोक का आदेश नहीं देंगे। कोर्ट ने सरकार को जवाब देने के लिए 6 हफ्ते का समय दिया है।

आज अनुसूचित जाति/जनजातियों के एक संगठन ‘जॉइंट एक्शन फोरम फ़ॉर फाइटिंग एट्रोसिटी’ की तरफ से इन याचिकाओं का विरोध किया गया। कोर्ट ने संगठन की तरफ से पेश वकील कौशल गौतम को भी पक्ष रखने की इजाज़त दे दी। मामले की सुनवाई अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में होगी।