निःशुल्क सेवा के आसरे बच्चों के भविष्य गढ़ने की कवायद शुरू

ख़बरें अभी तक। क्या आप शिक्षक बनने के उद्देश्य से गणित, भौतिकी, रसायन, भूगोल, अर्थशास्त्र में से किसी एक विषय के साथ स्नातकोत्तर की डिग्री ली है? उसके बाद क्या आपने बीएड किया है ? अगर किया है तो ज़ाहिर सी बात है कि आप पठन-पाठन को इच्छुक होंगे ही तो आपके लिए निकला है सुनहरा मौका. आप 15 जून तक आवेदन कर सकते हैं. अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा और योग्यता पर भी खरा उतरें तो आप भी पठन-पाठन कर आत्मीय आनंद की अनुभूति कर सकते हैं.

ध्यान रहे कि अगर आपने लगभग 25 वर्षों या उससे अधिक समय देकर व कड़ी मेहनत कर डिग्रियां हासिल की हैं और आप एक अच्छे वेतन का खवाब संजोए अपने परिवार का भरण-पोषण करने हेतु अपनी आर्थिक स्थिति मज़बूत कर सेवा देने को इच्छुक हैं तो आप इंतजा़र कीजिए क्योंकि आप अभी कतार में हैं. यह रिक्तियां केवल नि:शुल्क सेवा देने वाले योग्य युवक-युवतियों के लिए है. अब शिक्षक बनने की इच्छा रखने वाले युवक-युवतियों के बारे में आखिर सरकार क्या सोंचती है, उसे स्पष्ट करना चाहिए. क्या शिक्षा के क्षेत्र में जाने व शिक्षण संस्थानों में पढ़ाकर देश के भविष्य सुधारने  की इच्छा रखने वाले विद्यार्थी वाकई राज्य में या हज़ारीबाग जिला में इतने समृद्ध हैं कि इनकी एक बड़ी जमात नि:शुल्क पढ़ाने योग्य हैं.

एक ओर TET पास किए विद्यार्थियों की समय सीमा समाप्त हो जाती है पर नौकरी नहीं मिलती और दूसरी ओर एक योग्यताधारी को नि:शुल्क पठन-पाठन कार्य के लिए आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि पठन-पाठन कार्य की इच्छा रखने वालों को अंधकारमय जीवन की ओर ले जाने की तैयारी की जा रही है. ज़ाहिर सी बात है कि अपने जीवन के 25 या उससे भी अधिक वर्षों का कीमती समय के साथ साथ लाखों रूपये खर्च कर इतनी डिग्रियां कोई अपने बेहतर जीवन यापन के उद्देश्य से ही हासिल  करेगा लेकिन इस तरह TET निकालने के बावजूद नौकरी से महरूम रखना और नि:शुल्क पठन-पाठन हेतु विज्ञप्ति निकालना आखिर क्या दर्शाता है?

क्या विधायक या सांसद 5 वर्षों तक नि:शुल्क सेवा दे सकते हैं? जबकि अधिकतर विधायक व सांसद लखपति या करोड़पति के फेहरिश्त में शामिल हैं, बावजूद  इसके जनता की गाढ़ी कमाई के कर से वेतन के रूप में मोटी रकम लेने में नहीं हिचकते. इतना ही नहीं अगर कोई एक दिन के लिए ही सही विधायक या सांसद बन गए तो ज़िंदगी भर 20 से 25 हज़ार पेंशन का लाभ उठाते हैं, रूकिए…इनका अभी अंत नहीं होता है आगे भी देखें. अगर वह नसीब वाला निकला और किसी एक जगह से विधायक रहा सम्मानित जनप्रतिनिधि केवल एक दिन के लिए भी सांसद के तौर पर चुन लिए गए तो उनकी बल्ले-बल्ले क्योंकि अब इन्हें विधायिकी और सांसद दोनों का पेंशन जोड़कर ताउम्र 45 हज़ार के करीब मिलेंगे.

अब बताइए जनसेवा की भावना रखने वाले हमारे देश के कर्णधार जनप्रतिनिधिगण अपने वेतन का प्रथम या अगर दूसरी बार हार जाने का डर हो तो दूसरी बार जीतकर विधानसभा या लोकसभा पहुंचने वाले हमारे जनप्रतिनिधि अपने बहुमुल्य कार्य के 5 वर्षों का वेतन देश सेवा या राज्य सेवा में उपयोग करने को सरकार से आग्रह करेंगे? क्या पेंशन त्याग का सरकार से आग्रह कर देश सेवा में हांथ बंटाएंगे? अगर एक विधायक या सांसद लखपति या करोड़पति होने के बावजूद देश के बेहतर भविष्य के लिए ऐसे कदम नहीं उठा सकते तो अपने परिवार के बेहतर भरण-पोषण के साथ साथ एक बेहतर ज़िंदगी जीने के आसरे अपने बहुमुल्य समय गंवाकर योग्यता हासिल करने वाले पठन-पाठन कार्य के इच्छुक युवक-युवतियों से नि:शुल्क सेवा की उम्मीद क्यूं? हो सकता है आवश्यकता से अधिक आवेदन इस आसरे आ जाए कि कुछ वर्षों के बाद सरकार रहमदिली अपनाते हुए नौकरी दे दे! लेकिन सेविका-सहायिका भी इसी आसरे 2200 और 4400 रूपये के न्यूनतम मान्देय पर कार्य शुरू किया था कि एक दिन सरकार का दिल पिघलेगा और विधायक अपने पेंशन भर वेतन भी सेविका -सहायिका को देने की वकालत सरकार से करेंगे,  लेकिन हुआ क्या ? रांची में आंदोलन कर रहे सेविका-सहायिका के टेंट उजाड़ दिए गए.

बर्बरता की हद तो तब हो गई जब इनके पीने का पानी तक रोक दिया गया. याद रखिए! जिस दिन अधिकांश जनता को नौकरी मिलने के सरकारी लॉलीपॉप का वास्तविक एहसास हो जाएगा तो तख्ता पलटते देर नहीं लगेगी! गौरतलब हो कि क्रांति तुरंत नहीं आती लेकिन तंगी आम जनों से दिल खोलकर मुहब्बत करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि क्रांति दस्तक देने वाली है और उस वक्त करोड़ों रूपये से अपने-अपने दलों की कारगुज़ारियों के  गुणगान करने वाले विज्ञापन भी बौने पड़ जाएंगे.