होली का त्यौहार क्यों हैं विश्वभर में प्रसिद्ध, देश के किन शहरों में होली की अधिक हुड़दंग…

ख़बरे अभी तक: होली का यह त्यौहार वसंत ऋतु के आगमन और आने वाले पर्वों, और बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए यह उत्सव मनाया जाता है. हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। लेकिन जब हिरण्यकशिपु ने होलिका को आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। और जब होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी तो होलिका आग में जल कर भस्म हो गई, और ईश्वर भक्त प्रह्लाद बच उस आग में बच गया। और उस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। इसलिए ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है।

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होली का यह उत्सव पारंपरिक रूप से एक हिंदू त्योहार है, लेकिन अब यह त्यौहार दुनिया भर में मनाया जाता है। फाग उत्सव के बाद होलिका दहन और फिर धुलेंडी अर्थात धूलिवंदन मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं। मिठाइयां बांटते हैं। भांग का सेवन करते हैं। होलिका दहन के पांचवें दिन ही रंग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन प्रत्येक व्यक्ति रंगों से सराबोर हो जाता है। देश के हर कोने कोने में यह त्योहार बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। देश के प्रत्येक क्षेत्र में इस त्योहार को अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। अर्थात कोई होलिका दहन के दिन होली मनाता है, कोई धुलेंडी के दिन तो कोई रंगपंचमी के दिन। हलांकि देशभर में इस त्योहार की धूम होलिका दहन के दिन से ही शुरू हो जाती है।

होली की जोरदार हुड़दंग

उत्तरप्रदेश और बिहार में होली की हुड़दंग का लोग में जोरदार उत्साह रहता है। इसे वहां फाग या फागु पूर्णिमा भी कहते हैं, लेकिन विश्वविख्यात है कि बसराने की होली को देखने के लिए दर्शक दूर-दूर से आते हैं। यहां के लोग कई तरह से होली खेलते हैं, कोई  रंग लगाकर तो कोई डांडिया खेलकर और कोई लट्ठमार होली खेलते है। ऐसी ही होली की हुड़दंग देश के कई क्षेत्रों में देखनें को मिलती हैं।

बरसाने की लट्ठमार होली

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बरसाना की लट्ठमार होली विश्वभर में इसलिए भी प्रसिद्ध है, क्योंकि इसे खेले जाने का अंदाज निराला है. राधा-कृष्ण के वार्तालाप पर आधारित बरसाने की होली में इसी दिन होली खेलने के साथ-साथ वहां का लोकगीत ‘होरी’ भी गाया जाता है। फाल्गुन मास की नवमी से ही पूरा ब्रज रंगो से रंगीला हो जाता है, और पुरा ब्रज होली के उत्साह में झूम उठता है।  लेकिन विश्वविख्‍यात बरसाने की लट्ठमार होली जिसे होरी भी कहा जाता है, इसकी धूम तो देखने लायक ही रहती है। बरसाने की होली को देखने लोग देश-विदेश से आते हैं। बरसाने की होली देशभर में मशहूर है। और इसीलिए इसका उत्साह देशभर के लोगों में बहुत जोरशोर से देखनें को मिलता है। माना जाता है कि इसकी शुरूआत 16वीं शताब्दी में हुई थी।

कहा जाता है इस दिन कृष्ण के गांव नंदगांव के पुरुष बरसाने में स्थित राधा के मंदिर पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं लेकिन बरसाने की महिलाएं एकजुट होकर उन्हें लट्ठ से खदेड़ने का प्रयास करती हैं। इस दौरान पुरुषों को किसी भी प्रकार का प्रतिरोध करने की आज्ञा नहीं होती। वे महिलाओं पर केवल गुलाल छिड़ककर उन्हें चकमा देकर झंडा फहराने का प्रयास करते हैं। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है और उन्हें महिलाओं के कपड़े पहनाकर श्रृंगार इत्यादि करके सामूहिक रूप से नचाया भी जाता है। लठमार होली में महिलाओं को हुरियारिन और पुरुषों को हुरियारे भी कहा जाता है।  हुरियारिन लट्ठ लेकर हुरियारों को मजाकिया अंदाज में पिटाई भी करते हैं। वहीं पुरुष सिर पर ढाल रखकर खुद को हुरियारिनों के लट्ठ से बचाते हैं. इसीलिए बरसाना की लट्ठमार होली विश्वभर में प्रसिद्ध है, और इसे खेले जाने का अंदाज भी निराला है  

मथुरा वृंदावन की होली

होली, रंगों का त्योहार है जो भारत में हजारों वर्षों से मनाया जा रहा है। होली देश के हर हिस्से में बड़े ही धुमधाम के साथ मनाया जाता है लेकिन ब्रज भारत में ऐसी जगह है जहां होली विशेष रूप से बहुत प्रसिद्ध है। मथुरा वृंदावन की होली इतनी प्रसिद्ध मानी जाती है कि इसे देखने के लिए दर्शक विदेशों से खींचे चले आते हैं। यहां की होली अपने अलग रीति-रिवाजों और परंपराओं के कारण दुनिया भर के पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करती है। और दर्शक काफी संख्या में खींचे चले आते है।

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वृंदावन की होली क्यों इतनी खास होती है

बता दें मथुरा वो जगह है जहां पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था और वृंदावन वह स्थान है जहाँ पर वे बचपन में खेलते खेलते बड़े हुए थे। जब भगवान कृष्ण युवा थे। तो उन्होंने अपनी मां को राधा जो उनकी मित्र थी उनके गोर होने के बारे में बताया। भगवान कृष्ण खुद सांवले रंग के थे। तो उनकी मां यशोदा ने उन्हें खेल के रूप में राधा को रंग देने को कहा। जिसके बाद कृष्ण अपने नंदगाँव से राधा और अन्य गोपियों को रंगने के लिए बरसाना (राधा के गाँव) जाते थे। और गोपियां भी उन्हें डंडों से पीटती थीं। इस वजह से होली के त्यौहार की यह परंपरा विकसित हुई। और तब से ही होली का त्यौहार देश के हर क्षेत्र में बड़े ही धुमधाम से मनाया जाता है।

नंदगाँव की होली

बरसाना में होली मानाने के बाद अगले दिन ही नंदगाँव में इसी तरह के खास उत्सवों के साथ बड़े ही धुमधाम से होली मनाई जाती है। नंदगाँव का नाम धार्मिक ग्रंथों में भी शामिल है यह बताया जाता है कि इस गाँव में भगवान कृष्ण ने अपने बचपन का सबसे ज्यादा समय बिताया था। कहा जाता है कि जब कृष्ण राधा पर रंग डालने के लिए बरसाना गए थे तो इसके बाद राधा गोपियों के साथ कृष्ण पर रंग डालने के लिए अगले दिन नंदगांव आई थी। इसलिए होली उत्सव बरसाना में मनाने के बाद नंदगाँव में मनाया जाता है

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