बात पर बात क्यों, क्या है सरकार की मंशा ?

ख़बरें अभी तक || किसानों के साथ सरकार की बात इस बार भी विफल रही. 5 बैठक होने के बाद भी केंद्र सरकार किसानों की समस्या का हल नहीं निकाल पाई या यूं कहें की सरकार हल निकालना नहीं चाहती ? तीसरे दौर की बैठक में सरकार ने किसानों से कृषि कानूनों में खामियों का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए कहा था. तीसरे दौर की बैठक में जब किसानों ने तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की थी तो सरकार ने ये कहते हुए पलड़ा झाड़ लिया की अब वो कानून वापस नहीं ले सकते, लेकिन किसान कृषि कानूनों में खामियों की सूची बनाए और चौथे दौर की बैठक यानी 3 दिसंबर को हमें सौंपे. किसानों ने 3 दिसंबर की सुबह ही सरकार को खामियों का ड्राफ्ट सौंप दिया. लेकिन उसके बाद भी सरकार कोई हल नहीं निकाल पाई. सरकार ने फिर से किसानों के साथ बैठक करनी चाही, और इसके लिए 5 दिसंबर को 5वें दौर की बैठक बुलाई गई. लेकिन इस बैठक में भी कोई हल नहीं निकला. सरकार ने एक बार फिर वही रटा रटाया राग अलपाया और कहा कि किसान कृषि कानूनों में खामियों के उचित बिंदु नहीं दे पा रहे हैं, और हमने किसानों से उचित बिंदु मांगे हैं. बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहते हैं कि सरकार किसानों के हित में फैसला लेगी और इसके बाद उन्होंने जो भी कहा वो सब वो तीसरे और चौथे दौर की बैठक के बाद भी बोल चुके थे. भले ही सरकार को बार-बार एक ही बात बोलने में लज्जा नहीं आ रही हो लेकिन सुनने वालों को अजीब लग रहा है. किसानों ने तो अब सरकार से बैठक में बातचीत करने से ही इनकार कर दिया है. 5वें दौर की बैठक में किसानों ने मौन धारण कर लिया और एक पेपर में YES/NO लिखकर जवाब मांगा. लेकिन सरकार अपने तर्क ही देती गई. मोदी सरकार के कामों का लेखा जोखा किसानों को सुनाने में लग गई जिसपर किसानों को कोई इंट्रेस्ट नहीं था. यही कारण रहा की 5वें दौर की बैठक में भी कोई हल नहीं निकला.

क्या सरकार किसानों का इम्तिहान ले रही है ?

किसानों के साथ चर्चा करते केंद्रयी मंत्री

सरकार से इतने दौर की बातचीत विफल होने के बाद अब सवाल ये उठता है कि क्या सरकार किसानों का इम्तिहान ले रही है या फिर उनके धैर्य को परख रही है ?. अगर सरकार की मंशा किसानों को इसी तरह उलझाते रहना और बैठक पर बैठक करके किसानों को परेशान करना है तो सरकार को ये बात भी समझ लेनी चाहिए की किसान अपने साथ 4 महीने का राशन लेके बैठे हैं. सरकार किसानों को 10 या 20 दिन ही लटकाए रख सकती है, लेकिन उससे ज्यादा दिन तक किसानों को रोके रखना सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है, या यूं कहें कि सरकार के लिए असमंजस की स्थिति बन सकती है. सरकार कहीं अपने ही रचे हुए चक्रव्यूह में ना फंस जाए ?.

10 दिन बाद पीएम मोदी को किसानों की याद ?

किसान पिछले 10 दिन से धरने पर बैठे हैं लेकिन इस दौरान पीएम मोदी ने एक बार भी किसानों से मिलने की मंशा नहीं जताई. किसानों से बात करने तक प्रधानमंत्री जी को फुरसत नहीं थी. अब इसे आप क्या कहेंगे प्रधानमंत्री का किसानों के प्रति प्रेम या फिर कुछ और ?. खैर… कुछ भी हो प्रधानमंत्री जी आखिर किसानों का भला तो चाहते हैं इसलिए तो 5वें दौर की बैठक से चंद घंटों पहले एक हाईलेवल मीटिंग कर ली, लेकिन इस मीटिंग में क्या हुआ किसी को पता नहीं. चलो देर आए दुरस्त आए लेकिन आए तो सही. पीएम मोदी की इस बैठक के बाद ये कयास लगाए जा रहे थे कि आज किसानों की समस्या का कुछ तो समाधान होगा लेकिन भैया जब कुछ करबो का नाही तो होगा क्या ?. जब मीटिंग में कुछ फैसले लिए ही नहीं गए तो आगे क्या होता ?

छठे दौर की बैठक में बनेगी बात या फिर बॉर्डर पर गुजरेगी रात ?

किसान आंदोलन, धरने पर किसान

5 दौर की बैठक विफल हो चुकी है तो अब छठे दौर की बैठक बुलाई गई. ये बैठक 9 दिसंबर को सुबह 11 बजे होगी, लेकिन किसानों को अब सरकार से कोई उम्मीद नहीं है. 5वें दौर की बैठक के बाद ही किसानों ने सरकार से कुछ करने की उम्मीद खो दी है. किसानों ने बैठक से बाहर आने के बाद साफ-साफ कह दिया कि ना तो कुछ हुआ है और ना ही कुछ होगा. ये बयान भले ही छोटा हो लेकिन इसके मायने काफी हैं. अब अगले दौर की बैठक में सरकार किसानों को बॉर्डर से उठाकर उन्हें उनके घर भेजती है या फिर किसानों को फिर से बॉर्डर पर रात गुजारनी पड़ती है ये देखने वाली बात होगी.

पंकज पांडे की रिपोर्ट