शीतला अष्टमी के दिन माँ को बासी खाने का भोग लगाने के पीछे क्या मान्यता है?

ख़बरें अभी तक। यह तो सब जानते ही है कि शीतला अष्टमी पर शीतला माता की पूजा होती है और उन्हें बासी खाने का भोग लगाया जाता है लेकिन क्या आपको पता है शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाने के पीछे क्या कारण है…यदि आप इस बारें में नहीं जानते तो आज हम आपको इसके बारें बताएंगे….माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाने पर इस दिन को कई स्थानों पर बसौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन सभी लोग बासी खाना खाते हैं।

शीतला माता को मुख्य् रूप चावल और घी का भोग लगाया जाता है। मगर चावल को उस दिन नहीं पकाया जाता है, बल्कि उसे एक दिन पहले ही बनाकर रख लिया जाता है। मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर का चूल्हा नहीं जलता है और न ही घर में खाना बनाया जाता है। इसलिए एक दिन पहले ही यानी शीतला सप्तमी पर ही सारा खाना पका लिया जाता है और शीतला अष्टमी के दिन बासी खाना ही खाते हैं।

वहीं मान्यता यह भी है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाने की मनाही होती है, क्योंकि इस व्रत के बाद गर्मियां शुरू हो जाती हैं। गर्मियों में बासी खाने से बीमार होने का खतरा रहता है। बासी खाना भोग में लगाने के पीछे कहानी यह भी है कि एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे और गांववासियों ने गर्म भोजन माता को प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया जिससे मां मुंह भोजन से जल गया और माँ नाराज हो गईं और माँ की कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लग गई। लेकिन केवल एक बुढ़िया का घर सुरक्षित बचा गया।

तभी गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढ़िया ने बताया कि उन्होंने रात को भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया थी जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया। बुढ़िया की इस को बात सुनकर गांव वालों ने माँ शीतला से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया।