माँ शीतलाअष्टमी का व्रत है अति फलदायक, दूर होती है त्वचा से जुड़ी सभी बीमारी

ख़बरें अभी तक। माँ शीतला जिन्हें हम धैर्य की देवी भी कहते है….सफलता पाने के लिए धैर्य का होना हमें माँ शीतला बताती हैं। सृष्टि में सबसे ज्यादा धैर्यवान गधा इनका वाहन है, जिसे गणेश जी की दूब सर्वाधिक प्रिय है। होली के बाद इसे चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर मनाया जाता है। यह होली के बाद पड़ती है। इस बार शीतला अष्टमी 16 मार्च को पड़ रही है।

होली के बाद मौसम में बदलाव आता है और शीत ऋतु से ग्रीष्मकाल आने की आहट होने लगती है। इसलिए शीतला माता के स्वरूप को शीतलता प्रदान करने वाला माना जाता है। माता शीतला गधे पर सवार होती हैं। उनके हाथ में झाड़ू होता है और वह नीम के पत्तों को आभूषणों की तरह धारण किए रहती हैं। उनके एक हाथ में ठंडे जल का कलश भी रहता है। शीतला माता को साफ-सफाई, स्व स्थीता और शीतलता का प्रतीक माना जाता है।

शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है। जिन लोगों को त्वचा के जुड़ी कोई भी बीमारी होती वह इस दिन व्रत या शीतला माता से प्रार्थना करें तो उनकी बीमारी दूर हो जाती है।

मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। इस पूजन में शुद्धता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है। इस विशिष्ट उपासना में शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व देवी को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग बसौड़ा उपयोग में लाया जाता है।

इस दिन जिन्होंने व्रत रखा होता है वे मां की पूजा अर्चना के साथ माँ की कथा शीतलाष्टक को पढ़ते है और शीतला माता की वंदना के उपरांत उनके मंत्र का उच्चारण करते है जो बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र है…जो इस प्रकार हैं…..

वन्देहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।। मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।