कहीं खेली जाती है ‘लठ मार’ होली तो कहीं खेली जाती है ‘पत्थर मार’ होली

ख़बरें अभी तक। जैसा कि आप सभी को पता है हमारे हिंदुस्तान में हर त्योहार हिंदी पंचाग के अनुसार मनाये जाते है और इस तरह होली भी फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। होली का यह त्योहार बसंत ऋतु के स्वागत का त्योहार भी माना जाता है। होली के त्योहार को पुरे भारत में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन ब्रज, वृन्दावन, गोकुल जैसे स्थानों की होली काफी मशहूर है।

यहां की होली देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते है। ब्रज में प्रथा के अनुसार पुरुष महिलाओं पर रंग डालते है और महिलाए उन्हें डंडे से मारती है, यह एक बहुत ही प्रसिद्ध प्रथा है, जिसे देखने लोग उत्तर भारत जाते है। होली के दिन पुराने गीतों को ब्रज की भाषा में गाया जाता। कई जगहों पर फूलों की होली भी मनाई जाती है और गाने बजाने के साथ सभी एक दुसरे से गले मिलते है और एक-दूसरे को रंग लगाते है।

वहीं मध्य भारत और महाराष्ट्र में रंग पञ्चमी का अधिक महत्त्व है, लोग टोली बनाकर रंग, गुलाल लेकर एक दुसरे के घर जाते है और एक दुसरे को रंग लगाकर कहते है “बुरा न मानों होली है”। बता दें कि होली के दिन भांग पीना भी होली का एक विशेष भाग है इस दिन घरों में कई तरह के पकवान भी बनाए जाते है जैसे भांग के पकौड़ों के साथ गुझिया और भांग की लस्सी बनाई जाती है।

वहीं बात करें अगर हिमाचल की तो यहां विशेष तरीके से होली मनाई जाती है। हिमाचल में सर्दी अधिक पढ़ने के कारण यहां होली सूखे रंग और गुलाल के अलावा बर्फ से भी खेली जाती है। ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि इस समय हिमाचल के अधिकतर इलाके बर्फ से ढके रहते हैं। होली के दिन कुल्लू जिले में इस दिन भगवान रघुनाथजी की पालकी को उसी अंदाज में बाहर निकाला जाता है जैसा दशहरे के अवसर पर होता है।

इस दिन भगवान रघुनाथजी का विशेष श्रृंगार किया जाता है और शाही जलेब निकाली जाती है। रघुनाथजी के साथ हनुमानजी की प्रतिमा को भी होली का टीका लगाया जाता है। जलेब में शामिल होकर लोग एक-दूसरे पर रंग बरसाते हैं और नाचते-गाते है। इसमें कई लोग हनुमान का वेश धारण करते हैं। यह अपने आप में एक अनोखी और विशिष्ट परंपरा है। वहीं हरियाणा में होली के दिन अनोखी परंपरा है इस दिन लोग लठ मार होली खेलते है।

लठमार होली भगवान कृष्ण के काल में उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है। माना जाता है कि कृष्ण अपने मित्रों के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे और उनके साथ ठिठोली करते थे जिस पर राधारानी तथा उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं।

वहीं राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के लोग पत्थर मार होली खेलते है। इस अजीब मान्यता के चलते प्रतिवर्ष होली के दिन यहां कई लोग घायल होते है। डूंगरपुर के गांव भीलूड़ा एवं रामगढ़ में तो होली के मौके पर एंबुलेंस 108 लगाई जाती है।

क्योंकि पत्थर मार होली में लोग अक्सर गंभीर रुप से घायल हो जाते है। जिसके बाद उन्हे अस्पताल पहुंचाया जाता हैं। ये खूनी खेल होलिका दहन के बाद रात से ही शुरू हो जाता है तो धूलंडी तक चलता है। इस प्रथा की आड़ में लोग दुश्मनी भी निकाल देते है।