महिला सुरक्षा से जुड़े मुख्य कानूनी अधिकार, जिनके बारें में जानना हर महिला को हैं जरुरी

ख़बरें अभी तक। International Women’s Day 2020: जैसा कि आप सभी को पता है भारत में नारियों को मौलिक अधिकार, मतदान का अधिकार और शिक्षा का अधिकार है, अब चाहे फिल्म हो, इंजीनियरिंग हो या मेडिकल, उच्च शिक्षा हो या प्रबंधन हर क्षेत्र में स्त्रियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। जिससे बेटे और बेटी के बीच फर्क घटा है।

लेकिन भारत में अभी भी कुछ महिलाएं ऐसी है जो अपने अधिकार व महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनों के बारें में सही तरीके से नहीं जानती हैं। जिसके अभाव में वह उचित कदम नहीं उठा पाती। इसलिए, इस आर्टिकल के माध्यम से हम महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारें में अवगत कराएंगे..इस आर्टिकल का यही मकसद है कि महिलाएं अपने अधिकारों को पहचाने और इसका सही प्रयोग करें……

1.घरेलू हिंसा रोकथाम कानून: महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना करना अपराध है। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत कोई भी महिला अगर अपने पति या पति के परिवारवालों से प्रताड़ित हो रही है, तो वो घरेलू हिंसा के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है। इस मामलें में महिला की तरफ से कोई भी हिंसा की शिकायत दर्ज करा सकता है। आईपीसी की धारा 498-ए दहेज संबंधित हत्या की निंदा करती है। इसके अलावा दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में न केवल दहेज देने या लेने, बल्कि दहेज मांगने के लिए भी दंड का प्रावधान है।

2.वर्किंग प्लेस में उत्पीड़न के खिलाफ कानून: यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत आपको वर्किंग प्लेस पर हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा हक है। केंद्र सरकार ने महिला कर्मचारियों के लिए नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत वर्किंग प्लेस पर यौन शोषण की शिकायत दर्ज होने पर महिलाओं को जांच लंबित रहने तक 90 दिन की पेड लीव दी जाएगी।

3.इंटरनेट पर सुरक्षा का अधिकार: आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति के खींचना या साझा करना अपराध माना जाता है। आपकी सहमति के बिना आपकी तस्वीर या वीडियो, इंटरनेट पर अपलोड करना अपराध है। आप न्यायालय से एक इंजेक्शन आदेश प्राप्त करने का विकल्प भी चुन सकती हैं, ताकि आगे आपकी तस्वीरों और वीडियो को प्रकाशित न किया जाए।

4.कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार: जन्म से पहले ही होने वाले बच्चे की हत्या कर देना  कानूनी अपराध है।   मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 मानवीयता और चिकित्सा के आधार पर पंजीकृत चिकित्सकों को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम,1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है। यही कानून कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रसव से पहले लिंग निर्धारण से जुड़े टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगाता है।

5. मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार: बलात्कार की शिकार महिला को मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक संत्रास से गुजरना पड़ता है, जिस पर कार्रवाई करने की गहरी आवश्यकता होती है, ताकि वह महिला एक गरिमापूर्ण व सार्थक जीवन जी सके। बलात्कार की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है। स्टेशन हाउस आफिसर (SHO) के लिए ये ज़रूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण (Legal Services Authority) को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करें।

6.समान वेतन का अधिकार: समान वेतन अधिनियम,1976 में एक ही तरीके के काम के लिए समान वेतन का प्रावधान है। अगर कोई महिला किसी पुरुष के बराबर ही काम कर रही है, तो उसे पुरुष से कम वेतन नहीं दिया जा सकता।

7.संपत्ति पर अधिकार: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष, दोनों का बराबर हक है। लेकिन शादी के बाद पति की संपत्ति में महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत न होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है। शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं।

8.गुजारा भत्ता का अधिकार: अगर पति-पत्नी साथ न रहना चाहें, तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है। तलाक तक बात पहुंचने पर हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है।

9.मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार: मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह (तीन महीने) तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं।

10.नाम सार्वजनिक न करने या छुपाने का अधिकार: यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को अपने नाम की गोपनीयता बनाए रखने का पूरा आधिकार है। ऐसे मामलों में कोई महिला, किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने मामला दर्ज करा सकती है।

11.रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार: आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 के तहत एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है। बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है। साथ ही गिरफ्तार महिला के नजदीकी रिश्तेदारों को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है।

12.मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक: यदि कोई महिला किसी केस में आरोपी है, तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद निःशुल्क है। वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है। यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आर्थिक स्थिति वाली महिला के लिए है। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है।