हिमाचल के इस उत्सव में धनुष का एक-एक बाण ये तय करता है कि यहां कितने पुत्र लेंगे जन्म

ख़बरें अभी तक। हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति में आज भी एक बहुत ही अनोखा उत्सव अपनी पूरी शानों-शौकत के साथ मनाई जाती है। लाहौल-स्पीति के गाहर घाटी में गौची उत्सव को मनाने की परंपरा है। इस उत्सव में धनुष का एक-एक बाण ये तय करता है कि भविष्य में यहां कितने पुत्र जन्म लेंगे। एक तरफ से ये काफी अच्छी बात है कि आज के जमाने में भी ये लोग अपनी परंपरा को बरकरार रखे हुए हैं।

गौची उत्सव को गाहर घाटी के कबाईलियों के द्वारा मनाया जाता है। इस पुत्रोत्सव में लोग अपने इष्ट देवी-देवताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं क्योंकि इन्हीं की कृपा के वजह से पुत्रहीन परिवारों को पुत्र की प्राप्ति होती है। इस उत्सव में केवल वही परिवार भाग लेते हैं जिनके घर विगत वर्षो में पुत्र संतान ने जन्म लिया है। इस खास अवसर पर गौची समुदाय के लोग गांव के पुजारी के घर एकत्रित होकर युल्सा देवता की आराधना करते है।

इसके बाद पुजारी और सहायक पुजारी पांरपरिक वेशभूषा में तैयार होकर उन घरों में जाते हैं जहां पहले पुत्र संतान ने जन्म लिया है। ये सारे परिवार धार्मिक कार्यो को पूरा करने के लिए खुलसी यानि भूसा भरा हुआ बकरी का खाल, पोकन यानि आटे की तीन फुट उंची आकृति, छांग मतलब मक्खन से बनी बकरी की आकृति और हालड़ा अथवा मशाल का योगदान देंगे, और देव स्थान पर विधिपूर्वक स्थापित करेंगे।

दोपहर के समय इन गौची घरों से एकत्रित की गई खुलसियों को बर्फ के ऊपर पंक्तियों में रखेंगे। इसके बाद लनदगपा धनुष-वाण से इन खुलसियों पर निशाना साधते हैं। हर प्रहार के बाद पुजारी इस बात की भविष्यवाणी करता है कि आने वाले समय में कितने पुत्र की प्राप्ति होगी। बता दें इस उत्सव में केवल विवाहित पुरूष ही भाग ले सकते हैं। उत्सव में भाग लेने वाले हर परिवार को इस बात की आशा रहती है कि आने वाले समय में उनके घर में पुत्र ही जन्म लेगा।