भारत का एक ऐसा गांव है जहां का हर बाशिंदा संस्कृत में ही बात करता हैं

ख़बरें अभी तक। भारत में ज्यादातर हिंदी और अंग्रेजी भाषा ही बोली जाती है, वैसे तो भारत में इसके आलावा अनेकों भाषा बोली जाती है लेकिन ज्यादातर हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसके पीछे कारण है, लोगों में अंग्रेजी भाषा का अधिक क्रेज होना। पहले संस्कृत भाषा स्कूलों में एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाती थी, लेकिन समय के साथ-साथ इस भाषा का विषयों से निकलना शुरु हो गया है या यूं कहिए कि लोगों की संस्कृत के प्रति रुचि खत्म हो गई।

लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारें में जानकारी देंगे जहां सिर्फ संस्कृत भाषा बोली जाती है। शायद आपको इस बारे में जानकारी होगी, लेकिन आज हम आपको इस बारें में विस्तार से बताएंगे। इस जगह का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो किसी भी धर्म का हो….वो संस्कृत भाषा का प्रयोग करता है। यहां तक सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के समुदायों द्वारा भी संस्कृत भाषा ही बोली जाती है।

इस जगह में संस्कृत भाषा प्राचीन काल से ही बोली जा रही है और लोग अपनी रोजमर्रा ज़िन्दगी में भी संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते हैं, चाहे 5 या 6 साल का बच्चा हो या 85 साल का वृद्ध। अब आप सोच रहे होंगे की आखिर ये जगह कौन सी है और कहां पर स्तिथ है। तो आपको ज्यादा इंतजार ना करवाते हुए बता देते है कि यह कर्नाटक राज्य के शिवामोगा जिले का एक छोटा सा गांव मत्तूरु है, जहां की मातृभाषा कन्नड़ है, फिर भी यहां के लोग संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते है।

इस गांव में संस्कृत भाषा प्राचीन काल से ही बोली जा रही है और लोग अपनी रोजमर्रा ज़िन्दगी में भी संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते हैं। मत्तुर गांव में कुल 537 परिवार रहते हैं जो 2864 की जनसंख्या को योगदान देते हैं। 2011 की जनगणना के हिसाब से मत्तुर गांव में 1454 आदमी और 1410 औरतें रहती हैं। करीब-करीब 600 साल पहले संकेथी ब्राम्हण समुदाय के लोग केरल से आकर इस गांव में बस गए और तब से लेकर आज तक मत्तुर गांव को अपना घर मानकर रहते हैं।

10 साल के पूर्ण हो जाने पर यहां के बच्चों को वेदों का शिक्षण दिया जाता है और यहां के सभी बच्चे संस्कृत धड़ल्ले से बोलते हैं। आज भी दूसरे मज़हब का कोई अगर इस गांव में आता है तो उसका स्वागत तिरछी निगाहों से ही होता है। सारे रस्मों-रिवाजों को निभाते हुए यहां शादियां पूरे 7 दिनों तक चलती हैं। मत्तुर गांव का अपराध दर देश में मौजूद ज्यादातर गांवों से कम है। यहां ज़मीन को लेकर मार-काट नहीं होती क्योंकि यहां रहने वाले सभी लोग एक ही विस्तृत परिवार के सदस्य हैं।

मत्तुर गांव के थोड़ी दूर स्थित होसाहल्ली गांव में भी संस्कृत भाषा बोली जाती है। होसहल्ली गांव तुंगा नदी के करीब स्थित है। यहां के लोग गोमाख कला का समर्थन करते हैं। गोमाख एक अलग किस्म की कहानी कहने की शैली है जिसे होसहल्ली गांव वालों ने जीवित रखा है। संस्कृत दुनिया की सबसे महान और पुरानी भाषाओं में से एक है और इस भाषा की पहचान सिर्फ धार्मिक किताबों और ग्रंथों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। इसे सम्मान मिलना अनिवार्य है।