तमिलनाडु में पोंगल की हुई शुरुआत, 18 जनवरी तक मनाया जाएगा ये त्योहार

ख़बरें अभी तक। आज के दिन कई जगहों पर मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है तो वहीं आज से तमिलनाडु में पोंगल की शुरुआत भी हो चुकी है। इस बार यह त्योहार त्योहार 15 से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा। लोहड़ी की तरह पोंगल भी एक कृषि-त्योहार है। खेती-बाड़ी का सीधा संबंध ऋतुओं से है और ऋतुओं का सीधा संबंध सूर्य से है इसलिए इस दिन विधिवत रूप से सूर्य पूजा की जाती है।

वास्तव में इस पर्व के अवसर पर किसान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और जीविकोपार्जन में उनकी सहायता करने लिए अपना आभार व्यक्त करते हैं। इस त्योहार को पोंगल इसलिए कहते हैं, क्योंकि इस दिन भगवान सूर्यदेव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है, तमिलनाडु में उसे पोंगल कहते हैं। सदियों से चली आ रही परंपरा और रिवाजों के अनुसार इस दिन तमिलनाडु के लोग दूध से भरे एक बरतन को ईख, हल्दी और अदरक के पत्तों को धागे से सिलकर बांधकर इसे प्रज्वलित अग्नि में गर्म करते हैं और उसमें चावल डालकर खीर बनाते हैं फिर उसे सूर्यदेव को समर्पित किया जाता है।

तमिलनाडु में पोंगल का विशेष महत्व है। इस दिन से तमिल कैलेंडर के महीने की पहली तारीख शुरू होती है। इस प्रकार पोंगल एक तरह से नववर्ष के आरंभ का भी प्रतीक है। इस बार ये त्योहार 15 से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा। पोंगल के पहले दिन भोगी पोंगल में इंद्रदेव की पूजा की जाती है। इंद्रदेव को भोगी के रूप में भी जाना जाता है। वर्षा एवं अच्छी फसल के लिए लोग इंद्रदेव की पूजा एवं आराधना पोंगल के पहले दिन करते हैं। पोंगल की दूसरी पूजा सूर्य पूजा के रूप में होती है। इसमें नए बर्तनों में नए चावल, मूंग की दाल एवं गुड़ डालकर केले के पत्ते पर गन्ना, अदरक आदि के साथ पूजा करते हैं।

सूर्य को चढ़ाए जाने वाले इस प्रसाद को सूर्य के प्रकाश में ही बनाया जाता है। तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के नाम से मनाया जाता है। मट्टू दरअसल नंदी अर्थात शिव जी के बैल की पूजा इस दिन की जाती है। कहते हैं शिव जी के प्रमुख गणों में से एक नंदी से एक बार कोई भूल हो गई उस भूल के लिए भोलेनाथ ने उसे बैल बनकर पृथ्वी पर जाकर मनुष्यों की सहायता करने को कहा। उसी के याद में आज भी पोंगल का यह पर्व मनाया जाता है। चौथा पोंगल कन्या पोंगल है जो यहां के एक काली मंदिर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता। इसमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं।