यहां संभोग के लिए महिलाएं गा-गाकर पुरुषों को आकर्षित करती हैं

ख़बरें अभी तक। क्या आपको पता है भारत में एक ऐसा कबीला है जहां आधुनिकता से दूर होने के बावजूद भी सेक्स के मामले में यह कबीला काफी प्रगतिशील है। इस कबीले के लोग खुद को दुनिया के आखिरी बचे हुए शुद्ध आर्य मानते हैं। यह कबीला लद्दाख में है, लद्दाख में दार्द जनजाति पाई जाती है। ब्रोकपा दार्द जनजाति का ही एक कबीला है। ब्रोकपा लद्दाख के दाहनु, बीमा, गारकोन, दारचिक, बटालिक, शारचे और चुलिदान इलाकों में पाए जाते हैं।

लद्दाख के इस कबीले का इतिहास करीब 5,000 साल पुराना है

वे सीमा पर गिलगित-बलतिस्तान के कुछ हिस्से में भी रहते हैं। इनकी आबादी करीब 2,000 है। लद्दाख के इस कबीले का इतिहास करीब 5,000 साल पुराना है। यह माना जाता है कि शुद्ध आर्य के जो कुछ समुदाय बचे रह गए हैं, उनमें से ही ब्रोकपा भी हैं। लद्दाख में इस कबीले का आगमन कैसे हुआ, इसको लेकर अलग-अलग थिअरी दी जाती है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनका संबंध सिकंदर की सेना से है।

लद्दाख घाटी का सिर्फ यही इलाका उपजाऊ है

उनके मुताबिक, सिकंदर की सेना के सैनिकों का एक समूह पोरस के साथ युद्ध के बाद ग्रीस लौट रहा था। वे लोग अपना रास्ता भटक गए। वे लद्दाख के दाहनु गांव पहुंचे और वहीं बस गए क्योंकि लद्दाख घाटी में सिर्फ वही इलाका उपजाऊ है। इस समुदाय पर नूरबू नाम के स्कॉलर ने गहन अध्ययन किया है। उनके मुताबिक, इस कबीले के लोग लद्दाख के आम लोगों से सांस्कृतिक, सामाजिक, शारीरिक और भाषाई आधार पर बिल्कुल अलग होते हैं।

इनके रीति-रिवाज बहुत हद तक हिंदुओं से मिलते-जुलते हैं

महाभारत और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में भी दार्द का उल्लेख मिल जाता है। वैसे तो उनलोगों ने बुद्ध धर्म को अपना लिया है। लेकिन उनके रीति-रिवाज बहुत हद तक हिंदुओं से मिलते-जुलते हैं। वे गाय और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। वे भगवान को बलि भी चढ़ाते हैं। वे संगीत, शराब, आभूषण और फूलों को पसंद करते हैं। इनकी पोशाक फूलों और आभूषणों से सजी होती हैं। लद्दाख में बसंत के आने पर महिला और पुरुष, दोनों कई दिनों तक नाचते हैं।

ये समुदाय हर साल 22 दिसंबर को नए साल के तौर पर मनाते हैं  

सदियों से वे सौर कैलेंडर को मानते हैं। लद्दाख क्षेत्र में उनकी गतिविधि सूर्य के अनुसार होती है। वे हर साल 22 दिसंबर को नए साल के तौर पर मनाते हैं। ब्रोकपा समुदाय के स्त्री और पुरुष काफी लम्बे और सुंदर होते हैं। उनका रंग साफ होता है। उनके होठ मोटे और नाक नुकीली होती है। ब्रोकपा के बीच बहुविवाह का चलन पाया जाता है।

यहां शादी से पूर्व और विवाहेतर सेक्स संबंधों को स्वीकार्यता हासिल है

एक ही महिलाओं की कई पुरुषों से शादी की प्रथा वैसे कई जगह धीरे-धीरे खच्म हो गई है, लेकिन यहां यह प्रथा आज भी मौजूद है। इनके यहां शादी से पूर्व और विवाहेतर सेक्स संबंधों को भी स्वीकार्यता हासिल है। एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रोकपा समुदाय के बीच उनके चार गांवों से बाहर शादी की अनुमति नहीं होती है। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि उनकी नस्लीय शुद्धता बनी रहे।

महिलाएं गा-गाकर पुरुषों को संभोग के लिए आकर्षित करती हैं

इस वजह से उनके बीच खुले सेक्स को भी प्रोत्साहित किया जाता है। हर तीन साल पर समुदाय एक त्योहार मनाता है जिसका नाम बोनो-ना है। यह त्योहार फसलों और महिलाओं की उर्वरता के लिए मनाया जाता है। इस मौके पर महिलाएं गा-गाकर पुरुषों को संभोग के लिए आकर्षित करती हैं और शादी के लिए उनका हाथ मांगती हैं।