धान की बिक्री को लेकर किसान परेशान, नहीं बिक रही धान की फसल

ख़बरें अभी तक। हिसार: सरकार भले ही किसानों की फसल खरीद को लेकर लाख दावे करें लेकिन धरातल पर तस्वीरें अलग है। मंडियों में पड़ा किसान का धान सरकार को दिख नहीं रहा कई दिनों तक किसानों को अनाज मंडी में रहना पड़ता है दिन रात भूखे प्यासे बैठे किसान अपने धान बिकने की राह देखते रहते हैं। लेकिन किस्मत वालों का वक्त पर बिक जाता है और बाकी इंतजार करते रहते हैं।

धान की बिक्री को लेकर जब किसानों से बात की गई तो उनका दुख सामने आ गया किसानों का कहना है कि ना तो वक्त पर उनकी फसल बिकती है और ना ही धान का उचित रेट मिलता है सोनू के मुताबिक हालात ऐसे हो रखे हैं कि जहर खाकर खुदकुशी करने का मन करता है।

अनाज मंडी में आए सभी किसान दुखी थे सबका यही कहना था कि सरकार को किसानों के बारे में सोचना चाहिए। पिछले साल के मुकाबले इस बार धान की कीमतों में 1000 से लेकर डेढ़ हजार रुपए का फर्क आया है एक तो जमीन का ठेका बहुत महंगा होता है। ऊपर से कीटनाशक और खाद यूरिया महंगी मिलती है जिसकी वजह से उनका खर्च ही पूरा नहीं हो पाता है पूरे साल उम्मीद लगाए रखते हैं कि जितना करजा आढ़ती और सरकार से लिया हुआ है वह धान की फसल में उतार दिया जाएगा।

लेकिन जब धान की फसल बेचने की बारी आती है तो सारी उम्मीद पानी में बह जाती है क्योंकि ना तो उचित रेट मिलता है और ना ही वक्त पर फसल बिकती है। किसानों का आरोप है कि सरकार तो खरीदारी कर नहीं रही ऊपर से पता नहीं कौन लोग हैं जो ओने पौने दाम में उनकी फसल खरीदते हैं किसानों को सबसे बड़ी दिक्कत आ रही है।

सरकार किसान से खासे नाराज हैं किसानों का आरोप है कि सरकार ने धान का सपोर्ट रोक रखा है पहले हरियाणा पंजाब का चावल ईरान इराक जैसे देशों में जाता था। जिसके चलते उन्हें अच्छा लाभ होता था लाखों रुपए प्रति एकड़ धान की पैदावार होती थी, लेकिन अब निर्यात बंद हो जाने के कारण उन्हें नुकसान झेलना पड़ रहा है।

पराली जलाने का मसला इन दिनों जोरों पर है मंडी में आए किसानों से इसको लेकर भी बात की गई किसानों ने सीधा सीधा कहा कि पराली जलाना उनकी मजबूरी है। अगर सरकार कोई दूसरी व्यवस्था कर देती है तो वह पराली कतई नहीं चलाएंगे।

डी कंपोजर को लेकर भी किसानों ने सरकार को आड़े हाथों लिया किसानों ने कहा कि अगर प्रणाली को ना जलाएं तो अगली फसल देने पर भी नुकसान होता है यानी धान के बाद बिजाई की जाने वाली गेहूं की पैदावार घट जाती है। ऐसे में पराली जलाना उनकी मजबूरी है और वह जलाते रहेंगे।