ख़बरें अभी तक। आज हम एक ऐसे जिंदा दिल शिक्षक का जिक्र कर रहे हैं, जिसने प्रकृति के कहर को भी नजर अंदाज करते हुए अपनी मेहनत के बल पर बेहतरीन जिंदगी जीने का हुनर सीख लिया। सिरमौर के दूरदराज क्षेत्र मालगी पंचायत के शिक्षक हरिदत्त न सिर्फ अध्यापकों, बल्कि समूचे समाज के लिए प्रेरणास्रोत है।
दरअसल मालगी में स्थित प्राइमरी सरकारी स्कूल में तैनात हरिदत्त की दोनों बाजुएं और हाथ नहीं हैं। मगर हरिदत्त ने इसे अपनी लाचारी नहीं बनने दिया। 31 अक्तूबर 1970 को जन्मे हरिदत्त शर्मा की जन्म से ही दोनों बाजुएं नहीं हैं। प्रकृति द्वारा इस नन्हें बच्चे के साथ किए गए खिलवाड़ से दुखी न होकर मां-बाप ने इसे परमात्मा की इच्छा मानते हुए स्वीकारा और उसे कामयाब बनाने और हर परिस्थिति में जिंदा रखने की हर संभव कोशिश की।
अन्य 2 भाइयों व दो बहनों ने भी हरिदत्त को कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी और उनकी हर जरूरत को समय से पहले पूरा करने का प्रयास किया। नतीजतन इस दिव्यांगता के बावजूद भी हरिदत्त ने जिंदगी जीने का हुनर सीख लिया। मालगी से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद हरिदत्त ने हाई स्कूल सतौन से 10वीं की शिक्षा ग्रहण की।
जिसमें उनके सहपाठियों ने भी उनका बहुत सहयोग किया। 26 फरवरी 1992 को हरिदत्त को जेबीटी के तहत राजकीय प्राथमिक पाठशाला मालगी में बतौर शिक्षक नियुक्त किया गया और साथ ही सरकार ने यहीं उनके गृह ग्राम में ही बने स्कूल में उनकी स्थाई नियुक्ति कर दी। हरिदत्त ने कुदरत की इस चूक से छूटी कमी को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया और अपने सेवा करवाने की अपेक्षा शिक्षक बनकर समाज की सेवा करने का रास्ता चुना।
पहाड़ जैसी कठिनाइयों से जूझते हुए हरिदत्त ने पढ़ाई की और अपनी योग्यता के दम पर अध्यापक बने। अध्यापक बनने के बाद बड़ा सवाल यह था कि पढ़ाने के अलावा ब्लैकबोर्ड पर लिखना व बच्चों की कापियां बगेरा चैक करने का काम कैसे होगा। मगर दृढ़ निश्चय के चलते हरिदत्त ने यह काम भी बड़ी सफलता से कर दिखाया। पठन-पाठन का कोई काम ऐसा नहीं है, जिसमें हरिदत्त की दिव्यांगता आड़े आती हो। हरिदत्त कहते हैं कि उन्हें कोई भी कार्य करने में कोई समस्या नहीं है। बच्चों की कॉपी हो या ब्लैकबोर्ड, अपने पैरों से चॉक व पेन का बखूबी इस्तेमाल कर लेते हैं।
वह सरकार द्वारा अपंगता की बजाय दिव्यांग के शब्द को सराहनीय बताते हैं। पिछले 27 वर्षों से हरिदत्त ने इस ग्राम के कई ऐसे बच्चों को पढ़ाया है, जिनको आज बड़े शहरों में अच्छी नौकरियां मिली हैं। बचपन से ही स्वयं पर निर्भर रहने वाले हरिदत्त आज भी सुबह उठकर नहाने, खाने, स्कूल आने, पढ़ाने से लेकर बाकी सभी दिनचर्या के काम करने में स्वयं पूर्णतःसक्षम हैं।
कहते हैं कि ईश्वर अगर एक रास्ता बंद करता है तो हजारों खोल देता है। इसी मिसाल को सच साबित करते हरिदत्त शर्मा अपने पैरों से हर वो कार्य बड़ी आसानी से कर लेते हैं, जोकि शायद एक आम इंसान न कर पाए। शायद उन्हें यह भी एक ईश्वरीय देन ही है कि वे हंसी-खुशी हर कार्य को पूजा समझ कर करते है। बड़ी से बड़ी मुश्किल को आसानी से पार कर लेते हैं और माथे पर शिकन तक नहीं आने देते।