आर्थिक मंदी के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बना रहे मजदूर संगठन

ख़बरें अभी तक। शिमला में चल रहे सीटू के 13वें राज्यस्तरीय सम्मेलन में देश में चल रही भयंकर आर्थिक मंदी से बाहर निकलने को लेकर मजदूरों ने आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर ली है। पूर्व सांसद और सीटू के राष्ट्रीय महासचिव तपन सेन की अध्यक्षता में चल रहे सम्मेलन में मजदूरों ने एकजुटता के साथ केंद्र सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने फैंसला लिया है। सम्मेलन में मजदूरों के वेतन को न्यूनतम 18 हजार रुपये करने की मांग भी रखी गई।तपन सेन ने केंद्र सरकार पर मजदूरों के हक मारने के आरोप लगाए और कहा कि केंद्र सरकार ने 44 श्रम कानूनों को खत्म कर मजदूरों पर कुठाराघात किया है।

मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को तहस नहस कर दिया है। 15 लाख लोगों की नौकरियां कुछ ही दिनों में गयी है। फैक्टरियां बंद हो गयी है मजदूर बेरोजगार हो गया है।सरकार की गलत नीतियों के कारण आज पढ़ा लिखा युवा सड़कों पर घूम रहा है। केंद्र सरकार ने जो बजट पेश किया है उसमें न्यूनतम वेतन को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। मजदूर भूखा मर रहा है लेकिन सरकार बेशर्मी से अपने भत्ते बढ़ा रही है। मोदी सरकार विदेशी उद्योग को बढ़ावा दे रही है जिससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा है।

देश मे आर्थिक मंदी को दूर करने के दो रास्ते मजदूर आंदोलन और देश के लोगों को भूखा रख कर विदेशी निर्यात करना। लेकिन विदेशी निर्यात की दर भी 6% गिर गयी है।इसलिए आर्थिक मंदी से लड़ने का एक ही रास्ता मजदूर आंदोलन है जिसको लेकर सीटू ने सभी मजदूर संगठन को इकठ्ठा करके आंदोलन की रणनीति तैयार की जा रही है। तपन सेन ने बताया कि देश के अलग अलग शहरों में मजदूर संगठन निजीकरण के खिलाफ आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं।

सरकार 3 स्टील प्लांट को और ऑयल कंपनी के शेयर बेचने की तैयारी कर रही है।सीटू देश के मजदूरों के तमाम मुद्दों को लेकर 30 सितंबर को दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन करेगी जिसमें केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन की रणनीति तय होगी।इससे पहले 24 सितंबर को कोयला फैक्टरी में काम कर रहे मजदूर हड़ताल करेंगे और 26-27 सितंबर को बैंक मर्जर के खिलाफ हड़ताल पर रहेंगे।