ख़बरें अभी तक। श्राद्ध आज (13 सितंबर) से शुरू हो चुके है, जो कि 28 सितंबर तक चलेगें। श्राद्ध का अर्थ अपने देवों, परिवार, वंश परंपरा, संस्कृति और इष्ट के प्रति श्रद्धा रखना है। श्राद्धों के वक्त आपके पूर्वज किसी भी तरह घर आ सकते हैं तो किसी भी आने वाले को घर से बाहर न भगाएं। पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। इस अवधि में भूलकर भी कुत्ते, बिल्ली, और गाय को भगाना या हानि नहीं पहुंचानी चाहिए|
इस दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। उन्हें भोजन कराया जाता है, पिंड दान और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है। बता दें, हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा को मुक्ति देने के लिए श्राद्ध किया जाता है। आमतौर पर दिवंगत परिजन की मृत्यु की तिथि के दिन ही श्राद्ध किया जाता है। लेकिन पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध की तिथियों के मुताबिक श्राद्ध किया जाता है।
मान्यता है कि अगर आपके पूर्वज या पितर आपसे खुश हैं, तो दुनिया कि कोई ताकत आपका बाल भी बांका नहीं कर सकती और अगर वो नाराज़ हो गए तो पूरे परिवार का सर्वनाश हो जाता है। पितर का मतलब आपके पूर्वज और श्राद्ध का मतलब श्रद्धा। अपने पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक सम्मान करना ही श्राद्ध होता है। ऐसा कहा जाता है कि मरणोपरांत भी आत्मा भटकती रहती है। उसी आत्मा को तृप्त करने के लिए तर्पण किया जाता है। संतानें जौ और चावल का पिंड देते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान हमारे पूर्वज कौए का रूप धारण कर के आते हैं और पिंड लेकर चले जाते हैं।
श्राद्ध की तिथियां इस प्रकार है……
13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर- प्रतिपदा
15 सितंबर- द्वितीया
16 सितंबर- तृतीया
17 सितंबर- चतुर्थी
18 सितंबर- पंचमी, महा भरणी
19 सितंबर- षष्ठी
20 सितंबर- सप्तमी
21 सितंबर- अष्टमी
22 सितंबर- नवमी
23 सितंबर- दशमी
24 सितंबर- एकादशी
25 सितंबर- द्वादशी
26 सितंबर- त्रयोदशी
27 सितंबर- चतुर्दशी
28 सितंबर- सर्वपित्र अमावस्या